बलूचिस्तान ने लिया बड़ा फैसला: अब खुद को पाकिस्तान से अलग किया घोषित
पाकिस्तान पर भारत का सैन्य ऑपरेशन सिंदूर अभी भी जारी है, वहीं 14 मई 2025 को बलूच लेखक और कार्यकर्ता मीर यार बलूच ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर बलूचिस्तान गणराज्य की स्वतंत्रता की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान के लोगों ने अपना राष्ट्रीय निर्णय ले लिया है। बलूचिस्तान अब पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है और दुनिया को चुप नहीं रहना चाहिए। उन्होंने भारत से नई दिल्ली में बलूच दूतावास खोलने की अनुमति मांगी और संयुक्त राष्ट्र से बलूचिस्तान लोकतांत्रिक गणराज्य को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने और मुद्रा, पासपोर्ट और अन्य संसाधनों के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता प्रदान करने का अनुरोध किया है।
देखा जाए तो भारत के पास एक ऐसा अवसर आ रहा है। जो पाकिस्तान पर लगाम लगाने के लिए काफी है। भारत के पास उस देश से बदला लेने का एक बड़ा अवसर है जो भारत में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाकर भारत को परेशान करता रहता है। सवाल यह उठता है कि क्या भारत को ऐसे अवसर का उपयोग पाकिस्तान को कमजोर करने के लिए करना चाहिए? क्या भारत को बलूच स्वतंत्रता सेनानियों को मान्यता देनी चाहिए और उनके साथ खड़ा होना चाहिए? क्या प्रकृति एक बार फिर 1971 को दोहरा रही है? क्या आज यह संभव है कि भारत बांग्लादेश के निर्माण की तरह पाकिस्तान को तोड़कर एक और स्वतंत्र देश बलूचिस्तान बनाए? इसका उत्तर निश्चित रूप से हां है। इतना ही नहीं, यह काम भी भारत को जल्दी से जल्दी करना चाहिए। क्योंकि भारत बलूचों को मान्यता देने वाला पहला देश होना चाहिए। यह न केवल पाकिस्तान को परेशान करने के लिए जरूरी है, बल्कि यह भारत का नैतिक कर्तव्य भी है।
जब से पाकिस्तान ने 1948 में सैन्य कार्रवाई के आधार पर बलूचिस्तान पर कब्जा किया है, तब से ज्यादातर बलूचों को यह धारणा हो गई है कि पाकिस्तान कभी उनका नहीं था और न ही कभी उनका हो सकता है। अंग्रेजों के जाने के साथ ही बलूचों ने अपनी आजादी की घोषणा कर दी। पाकिस्तान ने पहले तो इसे स्वीकार कर लिया था, लेकिन बाद में इससे इनकार कर दिया। अंग्रेजों ने 1876 में सबसे बड़े बलूच नेता खुदादाद खान (खान ऑफ कलात) के साथ जो संधि की थी, उसके अनुसार बलूचिस्तान एक स्वतंत्र देश था। कहा जाता है कि खुदादाद खान को जिन्ना पर भरोसा नहीं था और इसलिए वह भारत में शामिल होना चाहता था। लेकिन 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसमें रुचि नहीं दिखाई। संभव है कि नेहरू ने ऐसा न किया हो। लेकिन यह माना जा सकता है कि अगर भारत ने बलूचिस्तान पर आंख नहीं मूंद ली होती, तो कम से कम जिन्ना उस पर कब्ज़ा नहीं कर पाते। इसके साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि जिस तरह से जिन्ना ने कलात पर कब्ज़ा किया, भारत भी वैसा ही कर सकता था। कम से कम अगर भारत ने उस पर कब्ज़ा कर लिया होता, तो बलूचों को ये जुल्म के दिन नहीं देखने पड़ते। 2016 में स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बलूचिस्तान और गिलगित के लोगों के प्रति अपनी सहानुभूति दिखाई थी। मोदी के पास बलूच लोगों की मांगों पर विचार करने का मौका है, ताकि नेहरू की गलतियों को सुधारा जा सके और भारत को बलूचिस्तान को एक देश के रूप में मान्यता देने वाला पहला देश बनाया जा सके।
2- पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जवाबी रणनीति
कश्मीर में पाकिस्तान के हस्तक्षेप को देखते हुए, कुछ लोगों का मानना है कि बलूचिस्तान का समर्थन करना भारत के लिए जवाबी रणनीति हो सकती है। बलूच नेताओं ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) को खाली करने की भारत की मांग का समर्थन किया है और चेतावनी दी है कि पाकिस्तान की अड़ियल नीति क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ा सकती है। भारत को कम से कम इतना तो करना ही चाहिए कि वह बलूच नेताओं की आज़ादी का समर्थन करे। बलूच स्वतंत्रता सेनानियों ने पाकिस्तान को परेशान कर रखा है। बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) का कहना है कि वह बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए सशस्त्र संघर्ष में सक्रिय है। हाल के महीनों में, BLA ने पाकिस्तानी सेना और पुलिस के ठिकानों पर हमले तेज़ कर दिए हैं। 11 मई 2025 को, BLA ने सैन्य काफिले, पुलिस स्टेशनों और प्रमुख राजमार्गों सहित 51 स्थानों पर 71 हमले करने का दावा किया। बलूच क्रांतिकारियों ने डेरा बुगती में गैस क्षेत्रों पर हमला किया, जिससे 100 से ज़्यादा गैस कुएँ प्रभावित हुए।
3-भारत के लिए सामरिक महत्व
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो ग्वादर बंदरगाह और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का घर है। भारत के लिए, बलूचिस्तान की स्वतंत्रता का समर्थन करना पाकिस्तान और चीन की रणनीतिक योजनाओं को कमज़ोर करने का एक तरीका हो सकता है, क्योंकि CPEC भारत के लिए सुरक्षा चिंता का विषय है। यह भारत को ग्वादर बंदरगाह और अरब सागर पर भू-राजनीतिक लाभ देगा। बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो इसके लगभग 44% भूभाग पर स्थित है। यदि बलूचिस्तान स्वतंत्र हो जाता है, तो पाकिस्तान अपनी भौगोलिक और आर्थिक शक्ति का एक बड़ा हिस्सा खो देगा, जिससे उसकी क्षेत्रीय स्थिति कमज़ोर हो जाएगी।
बलूचिस्तान की अरब सागर तटरेखा लगभग 700 किलोमीटर है, जो इसे भू-रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है। एक स्वतंत्र बलूचिस्तान भारत को ग्वादर और होर्मुज जलडमरूमध्य के पास एक मित्र राष्ट्र प्रदान कर सकता है, जो वैश्विक तेल व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग है। भारत का चाबहार बंदरगाह (ईरान में) ग्वादर का प्रतिद्वंद्वी है और अफ़गानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुँच के लिए महत्वपूर्ण है। स्वतंत्र बलूचिस्तान भारत की चाबहार परियोजना को मजबूत कर सकता है, क्योंकि इससे पाकिस्तान का प्रभाव कम होगा। मित्रवत बलूचिस्तान भारत को अरब सागर में अपनी नौसैनिक उपस्थिति बढ़ाने का अवसर दे सकता है, जिससे पाकिस्तान और चीन की नौसैनिक गतिविधियों पर नज़र रखी जा सकती है।
4-बलूच नेताओं की भारत से बार-बार अपील
हाल के वर्षों में बलूच नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अपनी आज़ादी के लिए बार-बार भारत से समर्थन मांगा है। इसी क्रम में 9 मई को बलूच नेताओं ने बलूचिस्तान गणराज्य की घोषणा की और भारत से मान्यता मांगी। दरअसल, बलूच नेताओं को भारत से बड़ी उम्मीदें रही हैं। बलूचों को लगता है कि जिस तरह भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को एक स्वतंत्र देश में बदल दिया, उसी तरह भारत बलूचों के लिए भी कदम उठाएगा। बलूचिस्तान की स्वयंभू पीएम नायला कादरी 2023 में भारत की यात्रा पर थीं। वे हरिद्वार गई थीं, जहां उन्होंने मां गंगा की आरती के दौरान बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए प्रार्थना की थी। नायला अक्सर भारत और वहां के लोगों से बलूचिस्तान के लिए समर्थन मांगती रही हैं।
इसी तरह मीर यार बलूच ने 9 मई 2025 को बलूचिस्तान की आज़ादी का ऐलान किया और भारत से दिल्ली में बलूच दूतावास खोलने की मांग की, जैसा कि इस लेख में बताया गया है। इसके अलावा कई एक्स पोस्ट में बलूच नेताओं ने भारत को सबसे पहले समर्थन देने वाला देश बनने की बात भी कही है, जैसे कि इस एक्स पोस्ट में कहा गया है कि भारत को बलूचिस्तान की आज़ादी को मान्यता देनी चाहिए ताकि पाकिस्तान को आर्थिक और सामरिक लाभ से वंचित किया जा सके। शायद यही वजह है कि भारत में भी बलूच आंदोलन को समर्थन देने की भावना बढ़ रही है। शायद यही वजह है कि भारत ही बलूचों की आखिरी उम्मीद है। इसलिए भारत को आगे बढ़कर बलूचिस्तान की आज़ादी को अपना नैतिक कर्तव्य मानते हुए मान्यता देनी चाहिए।